(व्यंग्य)........बाबू चाहे छोटा हो अथवा बड़ा, गोरा हो अथवा काला,लंबा हो अथवा नाटा, घुंघराले बाल वाला हो अथवा गंजा,चश्माधारी हो या नंगी आँखों वाला कोई फर्क नही पड़ता।बस बाबू का सरकारी होना आवश्यक है। पान या गुटखा से मुखद्वार को आच्छादित रखने वाला बाबू बड़े ही ठाठ से सरकारी कुर्सी पर तशरीफ चिपकाए रहता है। बाबू कार्यालय की शोभा होते हैं। प्रखंड के छोटा बाबू से मुख्यालय के बड़ा बाबू तक बाबू की वही अहमियत और महात्मय होता है जो हिंदु धर्म में छोटा तुलसी और बड़ा तुलसी का होता है। कार्यालय अवधि में फाइलों से ओवरलोडेड टेबल के बीच गंभीर और तनावपूर्ण बाबू का चेहरा बादलों के बीच सूरज की तपिश वाली छवि को भी लज्जित कर दे। कार्यालय का कक्ष बाबू के मुख आभामंडल से प्रदीप्त होता रहता है। काम करने की उत्कट इच्छा रखने वाले बाबू का कार्य निष्पादन मे ढेर सारे बाधक तत्व होते हैं।ऑनलाइन ड्यूटीरत बाबू को लिंक फेल्योर नामक बिमारी काम करने से रोक देता है। बाबू संपूर्ण पृथ्वी पर एकमात्र व्यस्ततम प्राणी है। अमूमन कार्यस्थल पर विलम्ब आगमन से ही इनकी व्यस्तता का अंदाजा लगाया जा सकता है। बाबू बहुमुखी प्रतिभा के धनी होते हैं। ये महान अर्थशास्त्री होते हैं। बिना काम किए सरकारी तनख्वाह और काम करने के एवज में पब्लिक नजराना द्वारा अपनी अर्थव्यवस्था और पारिवारिक व्यवस्था को दोनों को सुदृढ़ रखते हैं। बाबू परम ऊर्जावान और वातानुकूलित जीव होता है। पब्लिक से मिलने वाला विटामिन एम इनको असाध्य और जटिल कार्यो को निष्पादित करने के लिए बुस्टअप करता है। किसी भी तरह के मौसम में यदि इनका जेब गरम रहे तो दिमाग स्वत: ही ठंडा रहता है। 'कारज धीरे होत है काहे होत अधीर' को जीवन में आत्मसात करने वाले बाबू परम धैर्यवान होता है।बाबू बचपन से ही स्लो एंड स्टीडी वीन्स द रेस वाली कहानी के विजेता कछुआ को अपना आदर्श मानते हुए कच्छप गति से कार्यो को निष्पादित करते हैं।बाबू परम मिलनसार प्रवृत्ति के होते हैं।इन्हें हमेशा आगंतुकों से घिरा रहना पसंद है। मनौव्वल, गिड़गिड़ाहट, अनुरोध जैसे शब्द बाबू के चित्त को प्रसन्न रखता है। बाबू पियक्कड़ होते हैं...अरे, नहीं-नहीं...मेरा आशय बाबू पानी और चाय के शौकीन होते हैं। प्रतिघंटा दर्जनों आगंतुक से चायपानी प्राप्त कर अघाते नही हैं। बाबू का पाचन तंत्र भी मजबुत होता है। कितना भी खा ले इन्हें बदहजमी नही होती।मजे की बात तो यह है कि खाने के तुरंत बाद भी भूख लगी ही रहती है। बाबू परम गुणी और ज्ञानी होते हैं। यदा कदा उन्हें अपनी लेखनी पर फख्र भी होता है। घमंड भी लाजिमी है, आखिर उनके लिखे टिप्पण/ प्रारूप पर ही अधिकारी हस्ताक्षर करते हैं!
यदि आपको भी बाबू रुपी बहुमुखी प्रतिभावान, ऊर्जावान,दार्शनिक,गुणी, ज्ञानी,महापुरूष के दर्शन की अभिलाषा है, तो सरकारी कार्यालय के बाबू कक्ष में आपका स्वागत है!