मिडिल ईस्ट में बढ़ते तनाव से छोटी अवधि में भारतीय अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ने की उम्मीद नहीं है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि भारत की मैक्रोइकोनॉमिक फंडामेटल्स मजबूत हैं, लेकिन लंबी अवधि में कुछ हद तक भारत पर भी असर पड़ सकता है. गाजा में इजरायल के हमले के बाद 1 अक्टूबर (मंगलवार) को ईरान ने जवाबी कार्रवाई करते हुए इजरायल पर बैलिस्टिक मिसाइलें दागी हैं.
इसके बाद इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने ईरान पर जवाबी कार्रवाई करने का एलान किया है. इजरायल पर हमले के बाद अमेरिका ने ईरान को चेतावनी भरे लहजे में कहा है कि इसके गंभीर दुष्परिणाम झेलने होंगे. इस जियोपॉलिटिकल तनाव के बाद बुधवार को एशिया के शेयर बाजारों में दबाव देखने को मिला. अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोना नए रिकॉर्ड ऊपरी स्तरों पर पहुंच चुका है. जबकि, कच्चे तेल में भी उछाल देखने को मिल रहा है.
रिकॉर्ड फॉरेक्स रिजर्व को मिलेगा फायदा
मनीकंट्रोल ने अपनी एक रिपोर्ट में India Ratings & Research के सीनियर एनालिस्ट, पारस जसराय के हवाले से कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था पर कुछ हद तक असर दिख सकता है. लेकिन, अभी तक घरेलू फैक्टर्स मजबूत है. इसी वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर आउटलुक मजबूत है. एक्सपर्ट्स का यह भी है कि भारत के पास रिकॉर्ड फॉरेक्स रिजर्व से भी छोटी अवधि में फायदा मिलेगा.
अन्य एक्सपर्ट्स का कहना है कि जियोपॉलिटिकल अनिश्चितता और एनर्जी कीमतों में उतार-चढ़ाव की वजह से भारत पर असर दिखेगा. लेकिन, फॉरेक्स रिजर्व अस्थिर होने की स्थिति में ऐसा होगा. चूंकि, भारत के पास फिलहाल पर्याप्त रिजर्व है, ऐसे में छोटी अवधि में खास असर पड़ने की उम्मीद नहीं है. 20 सितंबर तक भारत का फॉरेक्स रिजर्व 692 अरब डॉलर का है.
लंबे युद्ध से जोखिम बढ़ने का खतरा
कारोबारी साल 2025 में भारत के आर्थिक ग्रोथ का अनुमान 6.5-7% तक पहुंच सतका है. जबकि, RBI ने इस साल के लिए 7.2% की दर से आर्थिक ग्रोथ का अनुमान लगाया है. एक्सपर्ट बता रहे हैं कि अगर यह युद्ध छोटे समय के लिए होता है तो भारत के लिए चिंता की कोई बात नहीं है. लेकिन, लंबे समय तक युद्ध जारी रहना जोखिम खड़ा कर सकता है. निवेश पर असर पड़ने से ग्लोबल अर्थव्यवस्था की रिकवरी में देरी होगी. भारत के एक्सपोर्ट पर भी इसका असर होगा.
एक्सपोर्ट में सुस्ती से पहले ही भारत की मैन्युफैक्चरिंग गतिविधियों पर असर डाला है. 1 अक्टूबर को जारी आंकड़ों से पता चलता है कि एक्सपोर्ट ग्रोथ में नरमी और सुस्त आउटपुट की वजह से PMI 56.5 के 8 महीने के निचले स्तर पर फिसल चुका है. कच्चे तेल के दाम में तेजी और कमोडिटी सप्लाई पर दबाव से महंगाई बढ़ने का खतरा बना हुआ है. ब्रेंट क्रूड ऑयल 2 अक्टूबर को 74 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर है. 2 दिन में कच्चा तेल 5 डॉलर महंगा हो चुका है.
कच्ते तेल महंगा होने से कितना असर?
ग्लोबल क्रूड ऑयल आउटपुट में ईरान का हिस्सा करीब 4% है. OPEC+ देशों ने दिसंबर से कच्चे तेल का उत्पादन बढ़ाने का भी फैसला लिया है. इससे कीमतों में तेजी पर लगाम लगाने में मदद मिल सकती है. लेकिन, मिडिल ईस्ट में तनाव बढ़ने से कच्चे तेल की कीमतों में तेजी और सप्लाई बाधित होने की स्थिति में भारत के राजकोषिय घाटे, रुपये में कमजोरी और घरेलू बाजार में महंगाई पर असर देखने को मिला है. कच्चे तेल में 10 डॉलर की बढ़ोतरी से भारत के राजकोषिय घाटे पर 30-40 बेसिस प्वॉइंट और महंगाई पर 20-30 बेसिस प्वॉइंट तक का असर देखने को मिल सकता है.
एक्सपर्ट्स ने यह भी कहा कि ईरान और भारत के बीच रणनीतिक आर्थिक संबंध हैं. अगर यह युद्ध लंबे समय तक जारी रहता है कि इससे व्यापार फ्लो पर असर पड़ सकता है. चाबाहर पोर्ट प्रोजेक्ट और ईरान-भारत गैस पाइपलाइन आदि पर इसका असर दिख सकता है.