व्यंग्य / 2023-04-16 11:30:58

पेपरोना पाॅजिटिव मंगरूदेव हास्य-व्यंग (विनोद कुमार विक्की)

हमारे मुहल्ला में कोहिनूरों की कमी नहीं है। बोले तो यहाँ एक से बढ़कर एक वेरायटी के बहुमुखी प्रतिभावान होमोसेपियंश की खेती होती है, यह और बात है कि डिमांड नही होने के कारण इम्पोर्ट नही हो पाते।फलस्वरूप गाँव की गलियों से मुहल्ला की मंडियों तक में ही ये प्रतिभाएँ जीवन भर घूर्णन और परिक्रमण करती रह जाती हैं। आज के प्रसंग में मै उन कोहिनूरों में से एक पेपरोना वायरस से पीड़ित समाचार सम्राट मंगरू देव मस्तमौला की चर्चा करूँगा।यदि मंगरूदेव को यशपाल रचित कथा अखबार में नाम का मुख्य चरित्र गुरदास का मोडिफाइड लाइव कैरेक्टर कहें तो कोई अतिशयोक्ति ना होगी। बाल्यावस्था में होश संभालने के बाद से ही मंगरू देव के लीवर, फेफड़ा, किडनी, ब्रेन आदि से कनेक्टेड धमनी और शिराओं के लाल रक्त कणिकाओं में पब्लिशिटी का हीमोग्लोबिन प्रवाहित होने लगा था।पेपरोना वायरस पॉजिटिव मंगरू देव के समाचार पत्रों में छपने और दिखने की लालसा ने शीला की जवानी और मुन्नी की बदनामी दोनो को पीछे छोड़ दिया था।दुधारू गाय में स्त्रावित ऑक्सीटोसिन की तरह जुझारू मंगरू में न्यूजोटाॅक्सिन हार्मोन का संचार ओवरफ्लो होने लगा था ! वैसे समाचार सम्राट मंगरूदेव की अखबारी पैठ वाली संघर्ष गाथा मराठा और मुगलों के बीच के संघर्ष से भी दो-तीन हाथ बड़ी ही होगी। राजमौली के सीक्वल मूवी अथवा आल्ट बालाजी के वेब सीरीज की तरह मंगरू का स्ट्रगल पीरियड भी लंबी अवधि वाला है। ईश्वर की माया और अखबारी मंगरू के मोह के बीच छत्तीस का आँकड़ा था।प्रकृति की माया देखिए, अखबार में छपने का शौक तो था मंगरू मस्तमौला को, किंतु बोर्ड परीक्षा में जिला टाॅप करने के कारण तस्वीरें छपी उसके पड़ोसी बिरजू की।बीस वर्ष की उम्र में ग्रेस मार्क्स पर बोर्ड पास करने वाले धैर्यवान मंगरू देव ने किसी तरह खींचतान कर अगले दस वर्षो में बीए भी पास कर लिया।अथाह संघर्ष के बाद भी उसने अखबारी मोह नहीं त्यागा।अंततः प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी में सात वर्ष तक समय, सम्पत्ति और सदबुद्धि गंवाने के बाद भी सरकारी सेवा में चयनित होने से चूक गए और इस प्रकार पुनः अखबार की सुर्खियों में आने और निःशुल्क छाने का बंपर मौका गंवा बैठे। दहेज रहित आदर्श अथवा अंतर्जातीय विवाह कर अखबार में चर्चित होने की आखिरी उम्मीद पर भी रिश्तेदारों ने पानी फेर दिया।ढलती उम्र और बढ़ती कमर देख घरवालों ने दान-दहेज एवं विधि-विधान के साथ मंगरू का विवाह करा दिया। विवाह के बाद घरवालों ने बेरोजगार मंगरू पर खेती या व्यवसाय करने का दबाव बनाना शुरू किया।इतिहास साक्षी है खेती-किसानी,दुकानदारी या मजदूरी से कभी किसी का नाम अखबार में नही आया है।मछली की आँख देख रहे अर्जुन की तरह मंगरू का एक मात्र लक्ष्य तो अखबारी सम्राट बनने का था। कहते है जो कुछ नही कर सकता वह राजनीति अच्छी कर लेता है।मंगरू देव ने भी वार्ड सदस्य से लेकर सांसद तक के चुनाव में भाग्य आजमाया किंतु दुर्भाग्य से हर बार जमानत जब्त हो जाने के कारण बतौर उम्मीदवार उसका नाम किसी अखबार या न्यूज चैनल में नही आया। घोर निराशा में एक दिन वह न्यूज पेपर पढ़ रहा था।पेज थ्री पर कुछ ऐसी खबरें और तस्वीरें छपी थी जिसे देखकर फुरफुरी नगरिया के समोसाभोगी मोटू की तरह अखबार पोषी मंगरू के दिमाग की बत्ती जल गई। अपने दिमाग में संपूर्ण ब्रह्मांड जात-पात उन्मूलन सोसायटी,आर्यावर्त लेखक-पाठक मंच, अखिल भारतीय सुशासन संघ,कुपोषित खेतिहर संघ, देश उद्धारक मोर्चा,पौआ-पासी मुक्ति मोर्चा,नकारा- सर्वहारा युवा संघ,बहू-बेटी दाल-रोटी सोसायटी,जर-जोरू-जमीन कमिटी,घरवाली-शहरवाली एकता मंच,हिंदी-हीब्रू भाषा उत्थान समिति आदि गैर-निबंधित वन मैन संगठन वाली दर्जनों संस्थाओं का खड़े-खड़े बौद्धिक प्रसव कर डाला। हवा-हवाई दिमागी उपज वाली उपरोक्त पार्टियों के लिए स्वयं को किसी पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष,किसी का महासचिव, तो किसी संघ का राष्ट्रीय संयोजक घोषित कर दिया।बिना किसी बोर्ड बैनर के मंगरू का घर बहुसंघी संस्थानों का इकलौता कार्यालय बन गया। अगले दिन उसने अलग-अलग पार्टी और पद नाम से लेटर पैड छपवा लिया।चाय-समोसा,ताड़ी-चखना पर दो-चार चेला चपाटियों के साथ समाहरणालय,स्टेशन,चौक-चौराहो से अंतरराष्ट्रीय कार्यालय अर्थात घर की चौकी-चारपाई पर विचार-विमर्श,धरना-प्रदर्शन,गोष्ठी-अंत्येष्टि के अलग-अलग मुद्रा वाली फोटो खींचकर अपने मोबाईल फोन की मेमोरी को फुल कर लिया। इसके बाद से मंगरू के महत्वाकंक्षी स्वप्न नौक की पतवार और स्थानीय अखबार के बीच कोई दूरी ही नही रह गई। हिंदी दिवस,ऊर्दू दिवस,युवा दिवस, बुढ़ा दिवस,बिहार दिवस,बेगार दिवस, मजदूर दिवस से लेकर मजबूर दिवस तक हर मौके पर हमारे मंगरू भैया की प्रेस विज्ञप्ति अलग-अलग लैटर पेड पर परिस्थतिनुकूल तस्वीरों के साथ पत्रकारों को प्रेषित कर दी जाती है। पत्रकार बंधु की काॅपी-पेस्ट महिमा एवं ईश्वरीय कृपा से मंगरू द्वारा प्रेषित खबरें उनके वन-मैन लिमिटेड नन-रजिस्टर्ड संस्थाओं के नाम एवं स्वघोषित पदनाम( राष्ट्रीय सचिव,संयोजक,अध्यक्ष आदि ) वाले शीर्षक के साथ अगले दिन के अखबारों में काले अक्षरों से पूती नजर आ जाती है। अब मंगरू भैया की स्थिति और प्रसिद्धि सभी सब्जियों में सुलभता से प्राप्त होने वाले आलू की तरह हो गई है। शोक-श्राद्ध, जयंती-पुण्यतिथि,धरना-आंदोलन से विमोचन- अवलोकन तक उपस्थिति या अनुपस्थिति सभी स्थितियों में मंगरू मस्तमौला द्वारा अनिवार्य रूप से प्रेस विज्ञप्ति जारी की जाती है और तदनुरूप अगले दिन मंगरूदेव अखबार की सुर्खियों में छाए रहते हैं।डेली छपने के कारण मंगरू को न्यूजोटॅक्सिन स्त्रवित बिमारी से आराम मिलने लगा है वहीं दूसरी ओर व्हाट्सएप पर मंगरू का डेली न्यूज प्राप्त करने वाले पत्रकारों का बीपी हाय तो ऑक्सीजन लेवल लो होने लगा है। गौरतलब है कि जितनी तकलीफ या वेदना कश्मीर के सैनिकों को भटके हुए पत्थरबाजों ने नही दी होंगी उससे कई गुना ज्यादा तकलीफ, फलाना पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष, ढिमकाना संघ के राष्ट्रीय महासचिव,अखिल भारतीय मौगी-मुंशा मोर्चा के राष्ट्रीय संयोजक आदि उपनामों के साथ ओजपूर्ण कारनामों युक्त दैनिक कवरेज के माध्यम से मंगरू भैया पत्रकारों को दे रहे हैं।मस्तमौला जी के अखबारी मोह के कारण तनावमुक्त मंगरू देव वाह-वाही में जबकि तनावयुक्त स्थानीय पत्रकार त्राहि-त्राहि में हैं। चलते-चलते एक राज की बात बता ही देता हूँ।दरअसल दो-चार चेला चपाटियों और बैनर पोस्टर के साथ फोटो खींचवा बैठक,धरना-प्रदर्शन के न्यूज में क्रांतिकारी/विरोधी नेता बनने वाले तथा दो केला, चार कंबल वितरण कर लाभुकों के साथ वाली सेल्फी के द्वारा समाचारों मे समाजसेवी बनने वाले अर्थात अखबार में जबरिया नाम की चाह रखने वाले पेपरोना वायरस से प्रभावित मंगरू देवों की संख्या हमारे एरिया में इतनी अधिक है कि मंगरूओं की दो-चार बस्ती बस जाए।

Latest News

Tranding

© NetworldIndia. All Rights Reserved. Designed by Networld