सिडनी. धरती की गहराई में सोना कैसे बनता है, इसको लेकर वैज्ञानिकों में अलग-अलग मत हैं। आम धारणा है कि गर्म तरल पदार्थ पृथ्वी की अंदरूनी दरारों से बहते हुए रासायनिक बदलाव से गुजरते हैं और इनके ठंडा होने पर सोना अलग हो जाता है। ऑस्ट्रेलिया की मोनाश यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के ताजा शोध में दावा किया गया कि भूकंप से पैदा हुई बिजली से भूगर्भ में सोने के टुकड़े बनते हैं।
नेचर जियोसाइंस जर्नल में छपे शोध में बताया गया कि क्वाट्र्ज जैसे कुछ क्रिस्टल यांत्रिक दबाव पर पीजोइलेक्ट्रिक (दबाव और गुप्त ऊष्मा से बनी बिजली) वोल्टेज पैदा कर सकते हैं। यह प्रभाव आमतौर पर क्वाट्र्ज घडिय़ों और कुकिंग लाइटर में पाया जाता है। शोधकर्ताओं ने पीजोइलेक्ट्रिक का परीक्षण कर यह समझने की कोशिश की कि बड़े सोने के टुकड़े कैसे बनते हैं। पीजोइलेक्ट्रिक प्रभाव की खोज सबसे पहले 1880 में फ्रांसीसी भौतिकविद जैक्स और पियरे क्यूरी ने की थी। पीजोइलेक्ट्रिक में ठोस पदार्थ की यांत्रिक ऊर्जा विद्युत ऊर्जा में बदलती है।
क्वाट्र्ज में होने वाली प्रक्रियाएं दोहराईं
क्या भूकंप के दौरान उत्पन्न यांत्रिक दबाव क्वाट्र्ज में पीजोइलेक्ट्रिक पैदा कर सकता है और क्या इससे सोने के टुकड़े बन सकते हैं, यह जानने के लिए शोधकर्ताओं ने भूकंप के दौरान क्वाट्र्ज में होने वाली प्रक्रियाओं को दोहराने की कोशिश की। उन्होंने पाया कि दबाव पर क्वाट्र्ज ने न सिर्फ इलेक्ट्रोकेमिकल रूप से सतह पर सोना जमा किया, बल्कि सोने के नैनो कणों का निर्माण और संचय भी किया।
मुख्य लेखक बोले…
शोध के मुख्य लेखक क्रिस वोइसी का कहना है कि भूगर्भ में तरल पदार्थों में रासायनिक बदलाव से सोना बनने का सिद्धांत भले व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता हो, यह सोने के बड़े टुकड़ों के निर्माण को पूरी तरह स्पष्ट नहीं करता। विशेष रूप से यह देखते हुए कि इन तरल पदार्थों में सोने की सांद्रता बेहद कम होती है। हमारा शोध सोने के निर्माण में भूकंप की भूमिका का महत्त्व साबित करता है।