व्यंग्य / 2023-03-03 08:11:51

" ललकार "(कविता) (विजय कुमार)

एक चींटी ने मुझे काटा.......मैंने उसे पकड़ कर.....मारा एक चांटा........ग़ुस्से में भर कर.....उसने मुझे डांटा......मुझ पर रौब झाड़ते हो......कमज़ोर को मारते हो...... हिम्मत है तो..... बिच्छू को पकड़ो....... उसका डंक तोड़ो.....उसकी बांह मोड़ो.....उसकी चुनौती में......एक ललकार थी.......मेरी ताक़त को......उसकी धितकार थी......हम बरसों से......यही तो करते आए हैं.....कमज़ोर को डराते....और मज़बूत से......सदा डरते आए हैं।

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