(व्यंग्य)...चहूंओर कोहराम मचा हुआ है। मीडिया की आपा-धापी के बीच सायरन वाली गाड़ियों का मलिन बस्ती में आना जाना लगा हुआ है। दरअसल सुबह-सुबह ही जाति विशेष के मसीहा, समाज के उद्धारक माननीय पूर्व विधायक लफड़ानंद बाबू के पार्थिव शरीर के अंदर अवस्थित रूह की वैलिडिटी समाप्त हो गई थी। दशकों पूर्व जन्म भूमि से पलायन कर चुके लफड़ानंद बाबू के मृत शरीर को उनकी आखिरी इच्छानुसार अंतिम संस्कार हेतु पैतृक गांव लाया गया था। सत्तर की आयु में लफड़ा नंद बाबू का देहावसान बाढ़ ,भूकंप, भूस्खलन, ट्रेन दुर्घटना आदि में हताहत हजारों जान-माल के नुकसान जैसी कोई मामूली क्षति नहीं थी बल्कि वैश्विक स्तर पर अपूरणीय क्षति है।ऐसा प्रतीत हो रहा है इस अपूरणीय क्षति से जाति विशेष के मामूली मानव,खादी मानव से लेकर देव-दानव, धरती- गगन, यक्ष-गंधर्व सभी मर्माहत हैं। ईश्वर के श्रीचरणों में गमन कर चुके लफड़ानंद बाबू संघर्ष पुरूष थे।गरीबी और अभाव में गुजरा उनका बचपन और संपूर्ण जीवन चरित्र उपलब्धियों से भरा पड़ा है।उनके पिता राम भज्जू जो एक दिहाड़ी मजदूर थे, उनको पढ़ा-लिखा कर योग्य नागरिक बनाना चाहते थे।किंतु चौथी कक्षा में सरकारी विद्यालय का टेबल कुर्सी चुराते हुए रंगे हाथों पकड़े जाने और हेड मास्टर की धुनाई किए जाने के कारण लव आनंद पर अनुशासनात्मक कार्रवाई करते हुए उन्हें विद्यालय से निष्कासित कर दिया गया था। निष्कासित किए जाने पर शिक्षा से उनका नाता और उनके पिता राम भज्जू का सपना दोनो एक साथ टूट गया। उसके बाद लव आनंद बाबू ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।किशोरावस्था में जेबकतरा गिरी,छिनतई,ट्रेन में नशाखुरानी,चेन स्नैचिंग आदि जैसी चिंदी चोर घटनाओं से वो आस-पास के क्षेत्रों में लफड़ा नंद के नाम से लोकप्रिय होने लगे।
भारतीय दंड संहिता का शायद ही कोई ऐसी दफा हो जिनसे लफड़ा नंद बाबू अपने संघर्षमयी जीवन के दौरान कभी ना कभी अलंकृत ना हुए हों। शुरुआती दिनों में मुन्नी बाई के कोठा पर भी जाते थे और जब प्रतिष्ठित हुए अर्थात उनका राजनीतिक कद बढ़ा तो मुन्नी को अपनी कोठी पर ही बुला लेते थे।इनके संघर्ष की कहानी तमाम समाजसेवी इच्छुक अभ्यर्थियों के लिए प्रेरणा स्रोत है काफी नीचे से उपर तक पहुँचे थे लफड़ानंद। युवावस्था में गुटखा,पान, बीड़ी की मुफ्त जुगाड़ में विभिन्न राजनीतिक पार्टी का झंडा थामने और बदलने लगे। सत्तू, दारू, दम बिरयानी के दम पर बतौर कार्यकर्ता सैकड़ों बंद धरना प्रदर्शन को सफल बना चुके थे।इनकी दक्षता से ज्यादा इनके क्षेत्र में इनकी जाति बहुलता को देखते हुए राष्ट्रीय स्तर के एक राजनीतिक पार्टी ने इन्हें चुनाव में टिकट और जनता ने वोट देकर जब पहली बार विधायक बनाया तो उन्हें अपनी जाति की ताक़त और महत्ता का अहसास हुआ।आने वाले दिनों में जाति की राजनीति के सहारे उनकी राजनीतिक दुकान चल पड़ी।जाति की कृपा से अंतिम समय तक कुर्सी के साथ उनका अटूट बंधन कायम रहा।कई बार उन पर गबन का आरोप भी लगा किंतु पहुंच और प्रकृति की कृपा से साबित नहीं हो पाने के कारण कारावास जाने के सौभाग्य से वंचित रहे।अपनी जाति के उत्थान में भले ही वो असफल रहे किंतु उनका जाती(व्यक्तिगत) विकास खुब हुआ।लफड़ा नंद बाबू अपने पीछे चार संतान, सवा दर्जन नाती-पोते,दर्जनों फ्लैट, लक्जरी गाड़ियां, पेट्रोल पंप, करोड़ों की घोषित और अरबों की अघोषित संपत्ति के साथ ही आठ बार विधायक और मंत्री रह चुके विकास की भुकभुकाती ढिबरी वाले अपने विधानसभा क्षेत्र और अपनी जाति के लोगों के लिए छोड़ गए थे कई यक्ष प्रश्न !अब जाति के लिए कौन आवाज उठाएगा? जाति उत्थान का दिवा स्वप्न अब उन्हें कौन दिखाएगा?उनकी जाति के नागरिक अब किनको वोट देंगे? आदि ज्वलंत सवालों के बीच लफड़ा नंद बाबू का गुजर जाना देश,समाज और खासकर जाति के लिए अपूरणीय क्षति है।