मोरवा(समस्तीपुर)...बिहार के समस्तीपुर जिले से महज 17 किलोमीटर की दूरी पर मोरवा में स्थित है बाबा खुदनेश्वर धाम मंदिर जहां एक ही गर्भ गृह में भगवान शिव के पावन ज्योतिर्लिंग व मुसलमान महिला भक्त खुदनी बीवी की मजार की पूजा एक साथ होती है। संपूर्ण भारत में सांप्रदायिक सौहार्द का यह अनुपम स्थल अपने आप में अनोखा है। इस चर्चित मंदिर के संबंध में किंवदंती है कि 800 वर्ष पूर्व यहां ग्रामीणों की आबादी कम थी व घनघोर जंगल था। मोरवा में अली हसन और खैर निशा नाम के एक मुसलमान दंपति रहते थे। इन दंपति को खुदनी नाम की एक मात्र पुत्री थी। उस वक्त उक्त दंपति के पास जीविकोपार्जन का कोई दूसरा सहारा व साधन नहीं होने के कारण गाय चराने का काम करते थे। खुदनी जब बड़ी हुई, तब माता-पिता ने गाय चराने के लिए उसे मोरवा के जंगल में भेजने लगे थे।वह जंगल में प्रतिदिन गाय चराती थी।चरने के बाद उसकी गाय घर लौटने से पूर्व झाड़ी में एक जगह पर खड़ी हो जाती और उसके थन (स्तन) से दूध स्वत: निकलना शुरू हो जाया करता था।यह घटना प्रतिदिन घटती थी। घर पर गाय दूध नहीं दे पाती थी, जिस कारण खुदनी को माता-पिता की डांट फटकार सुनना पड़ता व पिटाई भी होती थी। खुदनी रहस्य का पता लगाने का निश्चय कर एक दिन छुप कर गाय के थन से स्वतः दूध को गिरते देख ली। उसी रात खुदनी के स्वप्न में शिवजी आते हैं और गाय का दूध गिराने वाले स्थान पर स्वयं रहने व दूध पीने की जानकारी देते हैं। अगर वह इस राज को किसी के सामने बताएगी तो उसकी मृत्यु हो जायेगी। यह भी बताते हैं। खुदनी रोज-रोज डांट सुनने व पिटाई होने के डर से अपने माता-पिता को सारी बातें बता दी।उसने अपने माता पिता से कहा की जब मैं मर जाऊं तो मेरी कब्र उसी जगह गाड़ना जहां अपनी गाय अपना सारा दूध गिरा दिया करती थी।कोलरा(हैजा) की बीमारी फैली।खुदनी उसके चपेट में आ जाती है और उसकी मृत्यु हो जाती है।लोग उसे दफनाने के लिए उसी जंगल में जाते हैं। कब्र खोदने का काम किया जाने लगा।कुदाल का प्रहार लगते ही वहां रक्त का फव्वारा निकलने लगा। यह देखकर लोग अचंभित हो गए और उसको साफ करने के बाद वहां एक काला पत्थर का शिवलिंग निकला, जिससे रक्त का फव्वारा निकल रहा था।भगवान शिव का शिवलिंग होने की जानकारी मिलते ही यह चर्चा पूरे इलाके में आग की तरह फैल गई।दोनों सम्प्रदाय के लोग जुटने लगे।हिंदू संप्रदाय के लोगों के द्वारा पूरे भक्ति भाव के साथ पूजा अर्चना शुरू कर दी गई।यह खबर तत्कालीन राजा नरहन स्टेट व ताल्लुकेदार ताज खां के कानों तक चली गई।भगवान शिव से गलती मानने के बाद बड़ी मुश्किल से शिवलिंग से निकलने वाला रक्त बंद हुआ। लोगों ने भगवान शिव की पूजा शुरु कर दी। नरहन स्टेट व ताल्लुकेदार के सक्रिय पहल पर व दोनों समुदाय के लोग आपस में मिलकर व खुदनी की अंतिम इच्छा के अनुसार उसे भगवान शिव के स्वयंभू शिवलिंग के गज भर की दूरी पर दफना दिया गया।नरहन स्टेट ने दोनों को एक ही छत के नीचे लाकर मंदिर बनवा दिया।शिवलिंग व मजार एक ही छत के नीचे आज भी सांप्रदायिक सौहार्द सांप्रदायिक एकता के प्रतीक के रुप में विराजमान है। इस मंदिर का नाम खुदनी बीबी के नाम से जोड़कर खुदनेश्वर महादेव रखा गया। लाखों श्रद्धालुओं व लोगों का कहना है कि इस खुदनेश्वर मंदिर के अंदर भगवान शिव के शिवलिंग व खुदनी बीबी के मजार की पूजा करने से मनोकामना की पूर्ति होती है।यहां श्रद्धालु भगवान शिव की पूजा के साथ खुदनी बीबी के मजार की भी पूजा किया करते हैं। बिहार समेत देश विदेश के लोग यहां आकर अपनी मनोकामना की पूर्ति होने पर भगवान शिव को चढ़ावा चढ़ाते हैं। सावन महीने में पूरा महीना यहां गुलजार बना रहता है। विशेषकर महाशिवरात्रि के अवसर पर पांच दिवसीय मेले का भी भव्य आयोजन किया जाता है। बाबा खुदनेश्वर धाम में आकर लाखों श्रद्धालु अपनी मनोकामना की पूर्ति कर चुके हैं। वर्ष 2006 से ग्रामीणों के सृहयोग व हिन्दू व मुसलमान भाईयों के सक्रिय सहयोग से भव्य मंदिर बन चूका है। पूरी निष्ठा के साथ दोनों सम्प्रदाय द्वारा मिलजुलकर एकता प्रदर्शित करनेवाला यह अनुठा स्थल बिहार ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व को एकता का संदेश देता है।यहां की महिमा से प्रभावित होकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 2012 में यहां का दौरा कर, इसकी ऐतिहासिकता एवं सांप्रदायिक सौहार्द स्थली के रूप में संपूर्ण देश का दुर्लभ स्थल मानते हुए इसे पर्यटक स्थल के रूप में इसके सौंदर्यीकरण की घोषणा की। बिहार सरकार द्वारा चार करोड़ की राशि का आवंटन किया गया है।पर्यटक स्थल के नाम पर मंदिर परिसर के पोखरे का सौन्दर्यीकरण करने का कार्य भी अधूरा है।स्थानीय सांसदों के द्वारा यहां विवाह भवन सामुदायिक भवन इत्यादि का भी निर्माण कराया गया है। इस सांप्रदायिक सौहार्द की अनुपम स्थली का प्रभाव यह है कि, जहां देश में बार-बार सांप्रदायिक दंगे होते रहे हैं, लेकिन यहां पर आज तक कोई भी सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ है। यहां हिंदू और मुसलमान दोनों धर्म के लोग प्रेम से यहां निवास कर रहे हैं। बिहार ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व को सांप्रदायिक सद्भाव व एकता का संदेश देने वाला खुदनेश्वर मंदिर राज्य व केन्द्र सरकार,पर्यटन विभाग व जनप्रतिनिधि की उदासीन रवैये के कारण आज भी उपेक्षित है।मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, धार्मिक न्यास परिषद के अध्यक्ष, मंत्रीगण,सांसद व विधायक ने भी इसे पूर्णतः पर्यटन स्थल का दर्जा दिला नहीं पाए।सिर्फ कागज पर पर्यटन स्थल के श्रेणी में रख लिया गया है,लेकिन पर्यटन स्थल की आम सुविधाएं यथा धर्मशाला, यातायात, सौन्दर्यीकरण आदि से यह मंदिर परिसर अभी भी बंचित है। इस ऐतिहासिक मंदिर में प्रत्येक रविवार, बसंत पंचमी,सावन माह व महाशिवरात्रि के अवसर पर श्रद्धालु झमटिया,चमथा व सिमरीया से गंगाजल लाकर स्वयंभू शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं और खुदनी बीबी के मजार पर पुष्प अर्पित करते हैं।महाशिवरात्रि के अवसर पर मंदिर परिसर में दो दिनों तक जलाभिषेक कार्यक्रम चलता है।5 दिवसीय मेला भी आयोजित होती है। सावन माह के सोमवारी के अवसर पर लाखों श्रद्धालु जलाभिषेक करते हैं।इस स्थल को लोग भाईचारा, सद्भाव, सौहार्द का प्रेरणाश्रोत भी मानते हैं।