पटना....पुरोहित से परे अधिकतर महिलाओं ने नेम, नियम,निष्ठा से शिव-पार्वती की अराधना करते हुए हरतालिका तीज का अनुष्ठान किया।बडे़ ही मनोयोग से पकवानों के साथ नव परिधानों में सजी धजी व्रती पूजन करती पायी गई।तीज व चौठ पर्व को लेकर एक दिनी संशय के बीच कयी व्रतियों ने लोकाचार तथा स्थानीय स्तर पर विचार विमर्श कर सोमवार दिन ही तीज को किया।आधुनिक काल की महिलाओं में भी तीज व्रत को लेकर अति खुशी का माहौल देखा गया।यह कहना है व्रती रेणु सिंह का।वे कहती है कि माडर्न ख्यालात की उन्मुक्त बातें,तथा संस्कार ओ संस्कृति ही सनातन धर्म की मौलिकता है।वसुधैव तू कुटुम्बकम के बल पर इसका विस्तार किया गया और शिव-शक्ति की आराधना को गृहस्थी बसाने का आधार माना गया।हरितालिका तीज उस परम आनंदित पल का नाम है जहां दो शक्तियों का मिलन सृजनात्मक पहलू का आधार बन परंपरागत
हस्तांतरण का साक्षात्कार कर सकने में नैसर्गिक आनंद प्राप्त करते हैं।एक अन्य व्रती सुजाता रंजन का मानना है कि महिलाएं अघोषित पुरोहित हैं क्योंकि परंपराओं के हस्तांतरण से सृजनात्मकता बेटियों की धरोहर बन जाती है और छठ जैसे अनुष्ठान में भी सूर्योपासना बिना पुरोहित के सहयोग की महिलाएं करती आ रही हैं।इस तीज के मौके पर भी परिवार जनों का ही सहयोग का संवल बना तभी तो शिव-पार्वती को गृहस्थी का आधार स्तंभ माना गया।सुजाता कहती हैं कि अब सामुहिक परंपरा गीत-गायन का दौर प्रायः शहरी संस्कृति में कम है। हालिया वर्षों तक शिवनचारी, महेशवाणी, मिनती, उचती,बटगबनी गा कर तीज का जागरण होता था। इन्होंने भी परिवार की समृद्धि की याचना की है।
बताते चलें कि फल की खरीद ही केवल बाजार से की जाती है लेकिन अन्य प्रसाद घर पर ही व्रती सहयोग से करती हैं।