आस्था / 2024-02-04 15:57:12

जनकल्याण को लेकर भागवत कथा शुरू,भक्तों ने रूचि ली। (गंगेश गुंजन)

दरभंगा..हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी विकासात्मक समिति व श्री शारदा इंस्टीट्यूशन, लहेरियासराय द्वारा शिशिर कुमार कर्ण के आवासीय परिसर एचआइजी 189 मे आयोजित श्रीमद्भागवत कथा का शुभारंभ दीप प्रज्वलित व वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ बतौर मुख्य अतिथि के रूप में केवटी के विधायक मुरारी मोहन झा ,संगठन के अध्यक्ष व आयोजक शिशिर कुमार कर्ण एवं कार्यकारिणी अध्यक्ष ललन कुमार झा के द्वारा किया गया ,श्रीमद् भागवत कथा के पहले दिन आचार्यश्री वेदानंद शास्त्री आनंद ने भागवत का व्याख्यान करते हुए कहा कि सर्वप्रथम मानव जीवन प्राप्त जीव को सबसे पहले अपने आपको नियमित जीवनचर्या को निभाना चाहिए तभी आपको अपने अभीष्ट की प्राप्ति हो सकती है। आप चाहे भौतिक जीवनशैली को प्रश्रय दे या भगवान का आश्रय ले। क्योंकि प्रत्येक मानव के सिर पर तीन प्रकार के ताप यथा दैविक, दैहिक और भौतिक ताप रहता है। अतः सदैव अपने आपको संयमित जीवन जीना चाहिए । विदुर जी के अनन्य प्रेम के वशीभूत श्री भगवान ने केले के छिलके और सूखे साग को भगवान स्वीकार किए हैं। कलियुग में सत्कर्म भागवती कथा का श्रवण चिंतन और मनन करने कहा गया है। भक्त के वश में भगवान है इसका प्रत्यक्ष प्रमाण विदुरजी पर कृपा से है। जीव के कल्याण का मार्ग क्या है। किस प्रयत्न से मानव के दुखों में कमी आ सकती है। प्रत्येक जीव की यही आंतरिक इच्छा रहती है की उनके जीवन में किसी प्रकार के दुःख और समस्या न आये। परंतु जीव के पूर्वार्जित धर्मं और प्रारब्ध पर भी तो निर्भर है। उन्होंने कहा की हमें सदैव सात्विक भोजन और सत्य वचन का पालन एवं अनुसरण करना चाहिए। जैसा हमारा चित्त रहेगा वैसी हमारी चित्तवृत्ति होगी। भगवत प्राप्ति का लक्ष्य है क्या? इसका सीधा सा मतलब हमारे हृदय की शुद्धता है। निराभिमानी निरभिमान का भाव रहना चाहिए। अहंकार पूर्ण जीवन में उद्विग्नता रहती है। और उद्विग्न मन सच्चे कार्य और अध्यात्म का चिंतन नहीं हो पाता है।जिसने भी आर्तभाव और दीनता से प्रभु को पुकारा है उनपर प्रभु की कृपा प्राप्त हुई है।भगवन श्रीकृष्ण ने दुर्योधन द्वारा अर्पित छप्पन भोग का त्याग करते हुए श्री विदुर जी के घर विदुरानी द्वारा समर्पित भोग को स्वीकार किये। विदुरजी का निर्मल प्रेम ही प्रभु को विवश किये। दुर्योधन अपने अहंकार में उनको भोजन करवाना चाहते थे। इसीलिए आप हमेशा प्रभु को अपना तन मन और धन समर्पित करिये। संसार को आपका सिर्फ तन और धन चाहिए। आपका मन लेकर वो क्या करेंगे। उन्होंने कहा की इस संसार में जुटाए गए सभी सभी वस्तुएँ यही छोड़ कर जाना पड़ेगा। जब यह शारीर ही नश्वर है तो इस धन का क्या महत्त्व। उन्होंने कहा की प्रतिदिन चन्दन और वंदन करना चाहिए। हमें अपना आसन, श्वास,संग और अपने इंद्रिय को जितना चाहिये। इसका तत्काल प्रभाव आपकी क्रियाशीलता पर पड़ेगी। आपका कर्म शुद्ध हो जाये तो आपको परम गति प्राप्त हो जायेगी। ध्रुव जी उपाख्यान को बताते हुए कहा कि ध्रुवजी का अत्यन्त निर्मल प्रेम एवं दृढ विश्वास का परिणाम था की भगवान ने उन्हें परम भक्ति का वरदान और उनके लिए धृवलोक का ही निर्माण कर डाला। सर्वप्रथम अपने आपको अस्तित्व विहीन समझकर सर्वोच्च सत्ता उनमे ही समझना चाहिए ,मौके पर संगठन के सचिव डी एन मल्लिक, उपाध्यक्ष अवधेश सिंह, कार्यकारिणी अध्यक्ष ललन कुमार झा,भाजपा युवा नेता शशिधर झा, अंकित ,मनीष चौधरी सहित सैकड़ों लोग उपस्थित थे।

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