दरभंगा.....वर्तमान समय में भारत में आजादी का अमृत महोत्सव काल है।यह दिवस श्रमजीवियों को समर्पित है।कड़ी मेहनत,लगन से राष्ट्रीय समृद्धि के लिए, नेतृत्व क्षमता के साथ कदमताल करते हुए,देश को शीर्ष पर पंहुचाने का कार्य किया।आधुनिक काल में भी खेती से सरोकार रखने वाले किसानों की दशा उतनी सुदृढ़ नहीं हुई है तो भी किसानी की ओर सभी उम्मीद भरी नज़रों से देखते हैं। श्रमिकों का दायरा वृहत्तर है। मजदूर से लेकर पत्रकार तक श्रमजीवियों के नाम से जाने जाते रहे हैं। खदान मजदूर हों या खेती-बाड़ी में लगे जुझारू देशभक्त मजदूर,शहरों को आधुनिक सजावट देने वाले कारीगर या कोई अन्य लोग,सभी का योगदान निर्माण से है।आज का अकुशल मजदूर ही देश का अन्नदाता है। शिक्षितों की संख्या भी किसानी में बढ़ रही है। लेकिन यह भी सच है कि सरकारी सहयोग मिलने के बाद भी आज किसानों की दशा सवालों के घेरे में है।समस्तीपुर जिला के हसनपुर प्रखंड के पटसा के किसान भगवान बाबू ने बताया कि बाबू एक दिन कार्यक्रम होने से गुजर नहीं होता? महंगाई के चलते सबसे ज्यादा ,श्रमिकों को परेशानी है। बीमारी के दौरान ईलाज, शिक्षा, ख़ान-पान तथा दूसरे मद में हो रही बेतहाशा खर्च की भरपाई कैसे करें,यह समझ से परे है। ठठेरा समुदाय के सागर का मत है कि नित नये व्यापार से राहत मिलती है लेकिन यह बूढ़ा ठठेरा क्या करें! सरकारी स्तर पर नये व्यापार के लिए मौके तो खुले हैं परंतु आज बिचौलियों की भी कमी नहीं है। देश को शीर्ष पर पंहुचाने में एक भी श्रमिक पीछे नहीं रहेंगे,यदि ठीक से श्रम का मूल्यांकन किया जाय।