कुछ लोग थे जो वक्त के,सांचे में ढल गये। कुछ लोग हैं जो वक्त के,सांचे बदल गये।नमस्कार, उपरोक्त बातें बिहार के संदर्भ में ही किसी विकासवादी शायर ने बड़े ही मनोयोग से लिखी होंगी लेकिन मेरी सोच है कि 'जन सुराज" के संस्थापक अध्यक्ष पर उपरोक्त बातें सटीक बैठती हैं ।
हालिया वर्षों में जिस प्रकार से जनसेवा को अंगीकार करते हुए सूबे बिहार का हर गांव,टोले तक खुद की भावनाओं से अलख जगाने का नेक कार्य माननीय
प्रशांत किशोर ने, समवेत स्वर में किया, हमने तो उन्हें नमन करते हुए कदम से कदम मिलाकर जन-हित में फैसला ले लिया है कि जन जन के लिए प्रशांत किशोर ही 'रणनीतिकार से अब 'जन नीतिकार' बन गये हैं।प्रशांत किशोर ने शिक्षा के माध्यम से उपार्जित ज्ञान को जब जनता से जोड़ा तो भारी अंतर्द्वंद्व में रहे। ऐसा इसलिए कि सामाजिक सरोकार से कोसों दूर, नेतृत्व क्षमता को पाया। आंसू तो थी नेताओं की आंखों में पर, घड़ियाली। संवेदना भी दिखीं,पर संवाद हीनता थी मर्मस्पर्शी बयान भी सुने लेकिन ढकोसले की चासनी में डूबे हुए। अनगिनत बार पत्रकारिता के दौरान हमने नेताओं को, गिरगिट को भी पछाड़ते हुए देखा।आज हमाम को स्वच्छ रखना जरूरी है।एक क्रांतिकारी कवि दुष्यंत कुमार की उक्ति में कहूं -कहां तो तय था चिरागां,हर एक घर के लिए। चलें चिराग जलाने,पूरे शहर के लिए।संभावना आंसुओं में बह गए हैं।अब,प्रशांत नहीं चिंगारी है,जन-जन के हितकारी हैं। सेवा भाव का स्वार्थ है , जीवन ही परमार्थ है ,जन सुराज, जन-जन का सुराज।......
सुदीर्घ जीवन की कामना।ईश्वर सारथ्य करेंगे।