पटना.....जन्म लेने के बाद घर में खुशियां अधिक दिनों तक नहीं टिकती।जी हां यह सच्चाई है आज भी अधिकांशतः गरीब सवर्णों के घर की परंतु देश के अधिकांश नेता दलगत राजनीति से ऊपर उठकर इधर ध्यान नहीं देते !बेरोज़गारी का ग्राफ बढ़ाने वाले
शिक्षा,परीक्षा, इंटरव्यू के दौरान फार्म भरने से लेकर, सबसे ज्यादा संख्या सवर्ण की होती।नीतिगत आधार पर एक सामान्य घर का शिक्षित बेरोजगार युवा किन हालात में है,इस बात से नेता बेखबर हैं या आंखों पर पट्टी बांध रखी है। और तो और परीक्षा शुल्क के साथ रकम की कमाई,सरकार को नजर आ रही है। गर शिक्षित से बेरोजगारों की दशा में कर्ज़ का सहयोग प्राप्त न हो तो शिक्षित सवर्ण....! आजाद भारत में आरक्षण रूपी बीज पर राष्ट्राभिनंदन किया जाता, नेता के लिए यह वर्ग अर्थहीन हो गया है। राष्ट्रवादी चोला पहने तथाकथित नेताओं को इस बात की चिंता भी नहीं कि समाज के सवर्ण शिक्षितों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। देश के तथाकथित रहनुमाओं को मंडल : कमंडल खेल में अधिक मजा आता। सवर्णों को अतिरिक्त भुलावे में रखने के लिए बीते वर्षो में एक झुनझुना थमा दिया गया। गरीब सवर्णों का युवा खिलौने,गुब्बारे,केटरिंग तथा सभी तरह के कारोबार को स्वीकार कर लेते हैं।यह तो बड़प्पन है लेकिन नेता इसे उलझाने में लगे हुए हैं जब आरक्षण का प्रावधान लागू किया गया है तो सीमा पर फ्रंट में जाने के दौरान आरक्षण के फार्मूले के तहत फर्स्ट वही हों, जिनके लिए नेतृत्व क्षमता की व्याकुलता बढ़ीं रहती है। निर्दोष व गरीब सवर्णों का मन कचोटता होगा कि उनका सवर्ण के घर जन्म लेना अभिशाप बना रहा। आज जाति की डफ़ली पर ताल ठोकने वाले वोट के समय तो दोनों हाथ जोड़ते हैं लेकिन बाद में विभिन्न हथकंडे अपनाते हुए दो-दो हाथ आजमाया करते।एक प्रबुद्ध वर्ग के सवर्ण पत्रकार से जब पूछा गया तो उन्होंने कहा "हमलोग टैक्स अदाकारी हैं औरों को खिलाते हैं।बहरहाल भले ही कालांतर में आरक्षण के प्रावधानों पर बहस हो लेकिन अमीरी-गरीबी केवल वाद-विवाद का टौपिक ही रहेगा। अनदेखी और उपेक्षा यूं ही चलता रहेगा चुंकि नीति में राज-नीति है।