इसे व्याकरण से जोड़ कर देखने की जरूरत नहीं है। सर यानि सभी अंगों में प्रधानता का प्रतिनिधित्व करने वाला शरीर का महत्वपूर्ण और श्रेष्ठ अंग। सर का समायोजन तत्व, यौगिक, मिश्रण किसी भी जैविक अथवा भौतिक पदार्थ को विशिष्ट बना देता है। अखंड भारत में सर के समायोजन से बनने वाला द्वी पद ही ऐसा है, जो मौलिक और महत्वपूर्ण है। पहला 'सर'कार यानि माई बाप और दूसरा अफ'सर' यानि हुजूर।एक बड़े मियाँ तो दूसरे सुभानअल्लाह छोटे मियाँ।संपूर्ण भारतीय तंत्र संचालन के यह दोनो ही 'सर'वे'सर'वा है। सर का प्रथम पद धारक (सरकार) किसी की सुनता नही, तो अंतिम पद धारक (अफसर)वाला सभी को सुनाने से चूकता नहीं।यानि लागू हर जगह। पद और पावर का प्रभाव दोनो जीवों पर हमेशा बना रहता है, क्योंकि एक के नाम का प्रथम पद तो दूजे के पदनाम का उत्तर पद में 'सर' समाहित है। पान मसाला में के'सर'और कार्यस्थल पर अफ'सर' की प्रमुखता होती है ,बाकी बेअसर। आशिक को अपनी महबूबा से जानू,सोना,बाबू,राजा सुनने पर वह आनंद नहीं मिलता होगा जितना अफसर को 'सर' सुनने पर।हर बात पर 'सर' सुनने से इनको मल्टीविटामिन एनर्जी प्राप्त होती है।कर्मचारियों के जीवन में कृपा और प्रमोशन का सुखद अव'सर' भी सर के कारण ही आता है. बस ध्यान इस बात का रखना पड़ता है कि सर से जब कभी सामना हो तो हर हर और थर्र थर्र की मुद्रा में कोई क'सर' ना रह जाए!यह दीगर बात है कि किसी के लिए सर व धड़ के लिए सर की महत्ता खारिज करना संभव नहीं है.क्योंकि परिपक्वता के बाद ही सर संस्कृति होती है। न्याय,अन्याय,सही गलत हर परिस्थिति के सरा'सर' उत्तरदायी सर ही होते हैं। सर हर मर्ज के लिए रामबाण होते हैं, अल्'सर' और कैं'सर' भी सर के आगे छोटी पड़ जाती हैं।छिद्रान्वेषी जीवन जीना भी अ...सर दार ही है ऑफिस में अफ'सर' का ही दबदबा होता है। सर ने बेल बजाया नहीं कि "सर सर "बोल 'सर'सराता हुआ कर्मचारी सर के सम्मुख खड़ा हो जाता है।सर के आगे मजाल क्या है कोई भी अधीनस्थ पदाधिकारी या कर्मचारी 'सर' उठा कर खड़ा हो जाए।'सर' का आदेश हर कोई 'सर'आंखों पर रखता है। सर बनकर ही सर को समझा जा सकता है। हर अव'सर' पर सर अधीनस्थ की क्लास लगाने में कोई क'सर' नहीं छोड़ते।यहां भी पूर्वाग्रह से प्रेरित। मुख्यालय और क्षेत्रीय कार्यालय सर की 'सर'जमीं होती है।जहाँ सभी सीजन में सर का ही अ'सर' रहता है।सर 'सर'वज्ञ (सर्वज्ञ),'सर'वज्ञाता (सर्वज्ञाता) एवं 'सर'वशक्तिमान (सर्व शक्तिमान) है।यह आसान ही नहीं है। सर के 'सर'कस(सर्कस) में संपूर्ण 'सर'विस (सर्विस) काल तक 'सर'धा(श्रद्धा) के साथ सर-सर की 'सर'गम गा कर सर का गम दूर करते रहने से 'सर'वबाधा (सर्वबाधा) दूर रहती है।इसलिए महत्वपूर्ण यह है कि सर जमीं पर रहकर सरे आम न हों।