व्यंग्य / 2023-05-30 11:53:28

ईर्ष्या(लघुकथा) विजय कुमार

राजेश हमारी मित्र मंडली में सबसे दुबला पतला लड़का था। वैसे उसका नाक नक्श सुंदर था, लेकिन दुबलेपन के कारण उसका चेहरा साधारण सा प्रतीत होता था। मैंने उससे कहा था, "कुछ सेहत पर भी ध्यान दिया करो राजेश। सिर्फ़ पढ़ाई लिखाई में लगे रहते हो। लोग कहते हैं कि स्वास्थ्य सबसे बड़ा धन है और तुम उसे ही नज़रअंदाज़ कर रहे हो।" " अरे यार, पहले ये कम्पटीशन कम्पीट कर लूँ। नौकरी मिल जाए।फिर देखना ।लोग ये भी कहते हैं कि हड्डियां सलामत रहें, मांस तो बाज़ार में बिकता है। मैं भी तुम्हारी तरह मोटा हो जाऊंगा।" उसने मेरे पेट पर हाथ फेरते हुए कहा। आख़िरकार उसकी मेहनत रंग लायी। उसे नौकरी मिल गई। उसे स्टेशन पर सी ऑफ करते समय भी मैंने उसे सेहत पर ध्यान देने की सलाह दी थी। उस दिन रेलवे भर्ती बोर्ड का परिणाम निकला था।हर बार की तरह इस बार भी सफल प्रत्याशियों में मेरा रौल नम्बर नहीं था। दोपहर से शाम तक इधर उधर भटकता रहा। शाम में जब मैं घर आया तो माँ ने बताया कि राजेश आया था। तुम्हारा मोबाइल स्वीच ऑफ था, इसलिए तुम्हें बता नहीं सका। कह कर गया है कि आठ बजे तक फिर आऊंगा। बातों के दौरान भाभी ने कहा, " राजेश का बदन अब भरा भरा लगता है। है न माँ जी!" "हाँ, बहुत सुंदर लगता है देखने में अब।" माँ की टिप्पणी थी। ठीक आठ बजे राजेश मेरे घर आ गया।मुस्कुराते हुए सीधा मेरे कमरे में घुसा। बड़ी गर्मजोशी से हाथ मिलाया। उसका बदन सचमुच भर गया था। उसका पतला चेहरा गोल चेहरे में बदल चुका था। लेकिन पता नहीं क्यूं मुझे उसका चेहरा भद्दा सा लगा। मुझे लगा कि इससे अच्छा तो उसका पहले वाला चेहरा था।

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