सोनपुर.....लोकतंत्र में पत्रकार भी सुरक्षित नहीं ,प्रेस की स्वतंत्रता लोकतंत्र के लिए जरूरी है.इस बाबत सभी को साकांक्ष रहना होगा। हिंदी पत्रकारिता दिवस हर साल 30 मई को मनाया जाता है । इसका मुख्य कारण है कि हिंदी पत्रकारिता का शुभारंभ पंडित युगल किशोर शुक्ला ने कोलकाता में 1826 को हिंदी में 'उदन्त मारण्ड' अखबार प्रकाशित किए थे । वह स्वयं एक वकील ही नहीं बल्कि एक पत्रकार के साथ इस अखबार के संपादक भी थे लेकिन वह ज्यादा दिनों तक नहीं चला । 4 दिसंबर 1826 को बंद हो गया । भारतीय भाषा के अखबार 1819 में राजा राममोहन राय क़ौमदी नामक अखबार निकाला था । आज पूरे देश में हजारों पत्र-पत्रिका हर भाषा में छप रही है लेकिन पत्रकारिता दिवस के 97 साल हो चुके लेकिन पत्रकारिता के क्षेत्र में लगातार गिरावट आ रही है। स्वच्छ पत्रकारिता समाप्ति की ओर है और पत्रकारिता व्यवसायिक होती जा रही है । कहने को तो देश में चार स्तंभ हैं जिसके बदौलत देश के दिशा और दशा तय होती है लेकिन धीरे-धीरे सभी स्तम्भ पर दाग लग रहे हैं आम जनमानस को अब तो 2 स्तम्भ पर ही ज्यादा भरोसा दिख रहा है इस कलिकाल में। एक न्यायपालिका दूसरा पत्रकारिता है लेकिन सच यह है कि आजकल सच लिखना ,सच बोलना ,सच के साथ देने वाले पत्रकारों को कितनी फजीहत होती है उससे हृदय आत्मा कांप जाती है । पीड़ितों का दर्द कभी भी इन पत्रकारों की कलम से नहीं निकलता ,निकलता भी है तो उनके कलम को तोड़ दी जाती है या पत्रकारों को अपनी जान की कुर्बानी देनी पड़ती है । पत्रकारों को भले ही चौथा स्तंभ कहा जाता है लेकिन उनके दुःख व दर्द को कोई सुनने वाला नही है ।खासकर प्रखंड व जिला स्तर के पत्रकारों के लिए। जिस परिस्थिति में वे चल रहे हैं उनके दर्द का दास्तां सुनने वाला इस देश में कोई नहीं है । पत्रकारिता का उद्देश्य है -समाज सेवा ,पीड़ितों का दर्द उजागर करना, पीड़ितों को न्याय दिलाना, भ्रष्ट लोगो के द्वारा पीड़ितों को अगर प्रताड़ित किया जाता है तो खबर के माध्यम से उच्च अधिकारियों को अवगत करा कर पीड़ितों को न्याय दिलाना जो कि यह सिस्टम दूर-दूर तक दिखाई नहीं देता है इसके पीछे का कारण है पत्रकार स्वयं सुरक्षित नहीं है । पत्रकार बंधु को भी सोचना चाहिए कि अपनी ईमान का गला नहीं घोंटे। इस स्तंभ को बरकरार रखने के लिए ईमानदारी सबसे जरूरी है । पत्रकारिता करें चाटुकारिता नहीं। अगर चाटुकारिता करनी है तो पत्रिकारीता को कलंकित ना करें । आज लोकतंत्र के चौथे स्तंभ कहे जाने वाले पत्रकार दर -दर की ठोकर खा रहे हैं उन्हें ना ही सुरक्षा मिल रही है। ना ही सुविधाएं उपलब्ध हो रही है। आज की परिस्थितियां है कि ऊपर से नीचे तक अधिकांश लोग भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। ईमानदार कर्मठ लोगों को समझ में नहीं आता है कि उन्हें न्याय कहां मिलेगा और उनका न्याय कौन करेगा । इस कलिकाल में देश की आजादी के भले ही हम 75 वर्ष के आजादी अमृत महोत्सव मना रहे हैं लेकिन आजादी के 76 सालों में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी हुई है तो भ्रष्टाचार। जिसके कारण आज ईमानदार लोगों का जीना दुर्लभ हो गया है । 5 साल के लिए चुने गए जनप्रतिनिधि को जिम्मेदारी सौंपी जाती है कि वे समाज को विकसित करें, समाज में सामाजिक कुरीतियों को जड़ से खत्म करें लेकिन ऐसा वह नहीं करते हैं और वह भी भ्रष्टाचार के चंगुल में फंसकर समाज को विकसित न कर खुद ही विकसित हो जाते हैं । समाज और क्षेत्र का स्तर गिरते जा रही है लेकिन जिन पत्रकारों ने अपने एक कलम और एक कागज के बदौलत सरकार की हर योजनाओं को जन-जन तक पहुंचाने ,जन जागरूकता अभियान को लोगों तक पहुंचाने, भ्रष्ट लोगों को पोल खोलने के लिए अपनी जान जोखिम में डालकर वैसे भ्रष्ट लोगों से लोहा लेते हैं लेकिन उन पत्रकारों को कहीं सुख सुविधाएं या सुरक्षा सरकार की तरफ से नहीं मिलती है जिसके कारण अब पत्रकारिता का स्तर गिर रहा है । ऐसे में कलम के सिपाही को इस पत्रकारिता दिवस पर प्रण लेना चाहिए कि सच के साथ सदैव रहे , चाहे जान भले ही जाए । मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है और लोकतंत्र के लिए प्रेस की स्वतंत्रता जरूरी है । जिस देश और राज्य और क्षेत्र में प्रेस की स्वतंत्रता को कैद कर लिया जाए वह देश और राज्य कभी खुशहाल नहीं रह सकता । आज परिस्थितियां है कि सरकारी कार्यालय ,परीक्षा भवन, जरूरतमंद कार्यों में मीडिया को प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई है। अब तो सरकार जो खबर देती है वही प्रकाशित होती है अगर सरकार के गलत निर्णय या कार्यों को उजागर करते हैं तो ऐसे में उन पत्रकारों के साथ ऐसी सजा होती है जैसे वह देशद्रोही हो और जो लोग देश और राज्य और क्षेत्र को लूट रहे हैं वैसे लोगों का फूलों से स्वागत होता है यही लोकतंत्र है । जिससे देश लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी का एक संदेश दे रहा है । ऐसे में गिरती पत्रकारिता का स्तर के लिए पत्रकारों को चिंतन मंथन करने की जरूरत है क्योंकि देश की आजादी में पत्रकार का भी एक अहम रोल था। जिन्होंने अपनी जान जोखिम में डालकर अंग्रेजों से लोहा लेने में अहम भूमिका निभा कर देश और राज्य के कोने-कोने में बसे लोगों को अंग्रेजो के खिलाफ लोहा लेने के लिए उन्हें प्रेरित किया। जिसकी बदौलत आज देश की आजादी की अमृत महोत्सव लोग मना रहे हैं । सरकार को भी चाहिए कि लोकतंत्र के लिए मीडिया को स्वतंत्र रखना और पत्रकारों की सुख सुविधा और सुरक्षा व्यवस्था करनी चाहिए । देश और दिशा को बदलने में अहम भूमिका निभाने वाले पत्रकारों का कद्र करें उन्हें सम्मान दें तभी भारत देश महान हो सकता है ।