पटना(हास्य-व्यंग्य)..फिल्मों के शौक़ीन समीक्षावादी पुरुष लोटन चचा बेबाक टिप्पणी के लिए पुरे क्षेत्र में विख्यात हैं। भौतिक जीवन में घर से बीवी और सर से बाल के स्थायी पलायन के पश्चात फिल्मची लोटन चचा दादा साहब फाल्के का परम भक्त बन गए।श्वेत श्याम से रंगीन थ्री डी तक ए, वी,एवी, यू आदि श्रेणी की शायद ही कोई मूवी हो जो चचा की नंगी आंखों से छूटी हो।चचा को सिर्फ सिनेमा का ही नहीं बल्कि गांव की हर छोटी-बड़ी,लीगल इल्लीगल घटनाओं का ज्ञान था। उनको भले ही अब तक यह ज्ञात नहीं हो पाया है कि उनका इकलौता बेटा चरसी है, किंतु गांव की कुल जनसंख्या का कितना प्रतिशत पुरूष कितनी प्रतिशत परायी स्त्रियों के साथ कनेक्टेड है अथवा किस परिवार की सास-बहू में क्या चल रहा है आदि की बखूबी जानकारी थी। दूर से ही घूंघट काढ़ कर चलने वाली स्त्रियों की चाल देख कर बता दें कि जा रही महिला किनकी बहू या बीवी है। तकनीकी भाषा में बोले तो लोटन चचा गांव की सूचनाओं का रिकॉर्ड रखने वाला चलता-फिरता वसुधा केन्द्र हैं। पारखी नजर के स्वामी लोटन चचा फिल्म देखने के बाद सिनेमाघर के अंदर का आंखों देखा हाल गांव के लोगों को पकड़-पकड़ कर तब तक सुनाते जब-तक कि उस फ़िल्म के हीरो या हीरोईन की दूसरी फिल्म रिलीज नहीं हो जाती या फिर सुनने वाला बंदा स्वयं उस फ़िल्म को नहीं देख लेता था।पुष्पा द राइज के लिए प्रतीक्षारत चचा को आदि पुरुष के विवाद की जैसे ही जानकारी मिली उन्होंने तत्काल फिल्म देखने का जोखिम उठाया। निर्धारित तिथि को शहर से मूवी देख कर चचा जब लौट रहे थे तो गांव की सीमा पर ही उत्सुक सिनेमा प्रेमियों ने उनको घेर लिया। भीड़ ने चचा से आदि पुरूष की समीक्षा का आग्रह किया।अंधे को आंख,कवि को श्रोता और चचा को सिनेमा श्रावक की तो हमेशा प्रतीक्षा ही रहती है।फिर सवाल जवाब के बीच चचा के श्रीमुख से शुरू हुई आदि पुरुष महात्म्य पाठ। रै लोटन कैसी है ये फिल्म ?चचा के मित्र भूलन चौधरी पूछ बैठे।गहरी सांस लेकर चचा बोले- "देख भाई फिल्म त मने चोखी लागी। राम रावण का वो फाइट सीन देख कर डब्ल्यू डब्ल्यू ई के बाक्सर और गांव का अखाड़ा याद आ गया।घना मजा आया।बाकी विरोध करने वाले तो हर बात का विरोध करेंगे"।सुना है डायलॉग काफी विवादित है चचा ? अगला प्रश्न गांव के निठल्ला युवक दामोदर का था।"मने तो ऐसा ना लाग्या।फिजुल में लोग मनोज मुत्रवीर का विरोध कर रहे हैं।"मनोज मुत्रवीर नहीं चचा मनोज मुंतशिर...मौज एप्प पर रील्स बनाने वाली सोनल भौजी टोकते हुए बोली।हां हां वही मुत वीर..चचा ने अनमने ढंग से कहा।चचा मुत वीर नहीं मुंतशिर...क्यों अच्छे भले नाम का कबाड़ा कर रहे हो ? बेरोज़गार किरानी प्रसाद ने चचा के उच्चारण का सुधार करना चाहा।चचा बिफर पड़े- हद करते हो यार उसने पुरी फिल्म में संवाद का कबाड़ा कर दिया और हमसे जरा नाम के उच्चारण में क्या त्रुटि हो गई गदर मचाने लग गए...चचा की झल्लाहट से वातावरण में शांति छा गई।खामोशियों के बीच थोड़ी देर अनुलोम-विलोम प्राणायाम से चचा ने अपने रक्तचाप को नियंत्रित किया और आगे बोलना शुरू किया-देखो भाई ये तो सर्वविदित है कि बजरंग बली रामायण काल के ऐसे पात्र हैं जो कलियुग में भी जीवित हैं और वर्तमान कलियुगी समाज की भाषा और ओटीटी पर रिलीज फिल्मों की भाषा ज्ञान से जब म्हारे छोरे-छोरियों की बोल-चाल की भाषा बदल सकती हैं तो कलियुग के हनुमान जी की भाषा पर शक करना और मगजमारी करना फिजूल ही है। जब परिवर्तन संसार का नियम है, तो खामखां मासूम मुतवीर के पीछे पड़े हैं सभी...किंतु चचा वन गमन के दौरान नौका पर राम और सीता को खुशहाल और गाना गाते हुए दिखाया गया है जबकि वह तो विरह, विषाद और वेदना का दृश्य है। किसी ने भीड़ में से सवाल किया। "कर दी न बकलोली? अरे भाई सतयुग में सास ससुर देवतुल्य और ससुराल तीर्थ होता था तो उस समय ससुराल छोड़ने की पीड़ा लाजिमी है किंतु आज फाइव जी और ऐजी ओजी के दौर में कौन सा बेटा-बहू मां बाप के साथ रहना चाहता है तुम्हीं बताओ? तो नाव पर एंज्वॉय नहीं करें तो क्या शोक मनावें"। खिसियाते हुए चचा ने काउंटर क्वेश्चन किया।तो आपकी नजर में फिल्म में कोई कमी नहीं है? चौथी कक्षा पास टीपू पूछ बैठा। ऐसा मैंने कब कहा। कमी है, बिल्कुल कमी है।जब फिल्म में इतनी आधुनिकता दिखाई ही थी तो कुंभकर्ण के लिए यो-यो हनी सिंह से खाने-पीने वाले बोल पर एक रैंप सांग और लंका की सुंदर राक्षसियों का आइटम डांस करवा देते मजा आ जाता। चचा चेहरे पर कुटिल मुस्कान लाते हुए बोले।"किंतु चचा धर्म के नाम पर भद्दा मनोरंजन और धार्मिक भावनाओं से छेड़छाड़ करना तो ग़लत है" द्विअर्थी गीतों पर रील बनाने वाले बिंदास बबलू नैतिकता की दुहाई देते हुए बोला।चचा ने लंबी सांस ली और कहा-"...अरे सनातन धर्म के भगवान सहनशील, क्षमाशील और दयावान हैं।रील लाइफ से रियल लाइफ तक कभी देखा या सुना है कि सनातन का मज़ाक उड़ाए जाने पर भगवान किसी मानव पर कुपित हुए हों या किसी को दंडित किए हों...रही बात धार्मिक भावनाओं से छेड़छाड़ की, तो लल्ला जब धार्मिक भावनाओं से छेड़छाड़ कर आतंकवादी तैयार किया जा सकता है, धर्म गुरु और मौलाना का महल बन सकता है, भक्तों की आस्था से छेड़छाड़ कर लोकतंत्र में सरकार बन सकती है तो मुई फिल्म ही बन गई तो कौन सा कयामत आ गया..."।उक्त कथनों के साथ ही समीक्षावादी पुरुष द्वारा आदि पुरुष महात्म्य पाठ का समापन किया गया।